मस्जिद से मंदिर तक

गत कुछ दिनों पहले उच्चतम न्यायालय के एक फैसले ने भारत की राजनीति और राजनीतिक विचारधाराओं के लिए एक नई आधारशिला रख दी। यह फैसला अयोध्या में राम मंदिर के संदर्भ में दिया गया। इसके साथ ही वह संपूर्ण मुद्दों पर लगाम लग गई जो कि देश की लोकतांत्रिक राजनीति के केंद्र में धर्म को रखे हुए थे। यद्यपि इसे एक राजनीतिक दल विशेष स्वर्णिम अवसर की प्राप्ति भी समझ रहा है लेकिन व्यवहारिक मूल्यांकन करने पर यही प्रतीत होता है कि इस फैसले को चुनावों में भुनाया भी जाए तो आगामी आम चुनाव ऐसा आखिरी चुनाव होगा जिसमें धार्मिक मुद्दे का भरपूर उपयोग किया जा सकेगा लेकिन दूरदर्शिता के दृष्टि से देखा जाए तो किसी दल विशेष को नए सिरे से नई विचारधारा को भी
विकसित करना कठिन होगा वह भी ऐसे वक्त में जबकि देश की अर्थव्यवस्था की गिरती हालत से आम जनता के नए सवाल पैदा हो रहे हैं।

इसके इतर देखा जाए तो यह भी बात सुकून देता है कि जो भारत के बहुसंख्यको और अल्पसंख्यकों की सौहार्द्ता पर सवाल बना हुआ था और किसी छोटे स्तर पर  द्वेष की वजह बना हुआ था वही अयोध्या अब देश में बहुसंख्यक व अल्पसंख्यकों के बीच धार्मिक एकता की नज़ीर बनेगा। क्या था राम मंदिर का मुद्दा? राम मंदिर का मुद्दा कोई 2 3 दशक पुराना नहीं है इस मुद्दे की नीव 1528 में उसी समय पड़ चुकी थी जब 1528 में बाबरी मस्जिद बनी। बाबरी मस्जिद का बनना उसी कड़ी का हिस्सा रहा जिसमें मुगलों से पूर्व सल्तनत काल में बहुत मंदिरों को तोड़कर उनके चबूतरो पर मस्जिदें बनवाई गई। ऐसा होने के पुख्ता सबूत उन सभी मस्जिदों के आधारों के अध्ययन करने से प्रमाणित भी होते हैं। लेकिन यह बात भी ठीक है कि ऐसे अधिकतर निर्माण मुगल काल से पहले के हैं। वहीं दूसरी ओर भारतीय धार्मिक मान्यताओं में रामायण का स्थान भी सर्वविदित है।

रामायण में अयोध्या को भगवान राम का जन्म स्थल माना गया है और सनातन धर्म में राम को और रामराज के ‘दर्शन’ को अद्वितीय स्थान भी प्राप्त है। लेकिन मुगल काल में अयोध्या के लिए कोई संप्रदायिक फसाद का जिक्र नहीं मिलता इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे इस पर भी विभिन्न मत स्थापित है। अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर तिक्रिया और द्वेष प्रथमत: 1853 में सामने आया जब इस मुद्दे पर हिंदू -मुस्लिम दंगे हुए। 1859 में ब्रिटिश सरकार ने इस जगह पर तारबंदी करके हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए अलग-अलग स्थान चिन्हित कर दिए तब से इस मुद्दे को अदालतों में लाया जाता रहा। 1949 में एक अफवाह फैलाई गई कि बाबरी में रामलला की मूर्ति प्रकट हुई है दरअसल वहां रातों-रात रामलला विराजमान किए गए और लोगों में लोकप्रियता व विश्वास पैदा करने के लिए धार्मिक संगठनों ने ऐसा किया। अब इस रहस्यमई घटना ने पूरे देश में रामलला राजमान की चाहत की लहर दौड़ा दी लेकिन देश में स्थाई सरकारों देश की आतंकी चुनौतियों के चलते देश में इस मुद्दे का राजनीतिकरण जब तक नहीं हुआ था जब तक कि अस्थाई सरकारों का दौर शुरू ना हुआ हो । यह दौर था आपातकाल के बाद का दौर , इस समय सत्ता पक्ष में दल का विघटन और विपक्षी दलों द्वारा एक बड़ा दल बनाने की कोशिशें जारी हो गई। 80 के दशक में भारत में सूचना प्रौद्योगिकी प्रवेश कर चुकी थी और भारत में अंतरिक्ष में अभी -अभी नई उपलब्धियां हासिल की थी। टेलीविजन पर दूरदर्शन चैनल के प्रसारण की घटना विपक्षी दलों के लिए वरदान साबित हुई। रामानंद सागर कृत “रामायण” धारावाहिक लगभग पूरे भारत में अति उत्तेजना के साथ लोगों ने देखा। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रसारण के समय सड़कों पर आपातकाल सरीखा सन्नाटा छा जाता और इस धारावाहिक के अदाकारों को लोग पूजने  लग गए थे। इसी लोकप्रियता में विपक्षी दलों ने नई उम्मीद देखी भी और उसे भुनाया भी। दरअसल राम की लोकप्रियता एक दल विशेष की लोकप्रियता बन गई। उस दल के द्वारा संपूर्ण भारत में राम जन्मभूमि
आंदोलन शुरू कर रथ यात्रा निकाली गई और समय के साथ लोगों के द्वारा भारी मात्रा में समर्थन प्राप्त किया। आखिर 6 दिसंबर 1992 में कार सेवकों ने महज 3 घंटे में बाबरी मस्जिद का ध्वस्त कर दिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 में विवादित जमीन को  तीन हिस्सों में  विभाजित कर  पक्षो को सौंप दिया,  लेकिन इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की गई जिसने हाल ही में अक्टूबर 16,2019 को अपना फैसला राम लला विराजमान के पक्ष में सुनाया। फैसले के बिंदु़ o सर्वोच्च न्यायालय ने रामलला विराजमान को ‘विधिक व्यक्ति’ का दर्जा दिया और संपूर्ण विवादित भूमि को उसको सौंपा गया। o राम जन्म भूमि के विधिक व्यक्ति होने की याचिका खारिज की गई। o राम मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने के अंदर न्यास बनाने का केंद्र सरकार को निर्देश दिया। o अयोध्या में किसी अच्छी जगह 5 एकड़ भूमि मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए दिया जाए। o निर्मोही अखाड़ा की सभी मांग खारिज की गई।

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले का प्रमुख आधार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट को बनाया इसके अलावा न्यायालय की सुनवाई पीठ ने सभी पक्षों को यथोचित समय देकर उनकी दलील को सुना और उनके आधार पर फैसला सुनाया। एएसआई की रिपोर्ट में यह स्पष्ट था कि बाबरी मस्जिद का आधार की स्थापत्य कला इस्लामिक स्थापत्य कला से एकदम अलग और गैर इस्लामिक थी। आगे क्या? सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सभी पक्षों द्वारा सहर्ष सम्मान द्वारा स्वागत किया गया जो भारतीय संविधान और भारतीय लोकतंत्र भारतीय न्यायपालिका में सभी भारतीय वर्गों का अटूट विश्वास प्रतिबिंबित करती है और भारतीयता को गर्व प्रदान करती है। अब एक ही शहर में भव्य मंदिर और
आलीशान मस्जिद की कल्पना मात्र ही संप्रदायिक समूहों में आपसी सौहार्द्र प्रेम को पुख्ता करती है और गंगा जामुनी तहजीब की मिसाल विश्व में स्थापित करती है |

Blog by – MR. Vishwanath Saidawat
Asst. Prof., Department of Humanities

The Role Of LGBTQ In Society

Introduction The position of LGBTQ+ people and communities within society has changed throughout history, characterized by struggle, resistance, acceptance, and continued activism for equality and inclusion. The LGBTQ+ community is