वैज्ञानिक ज्ञान एवं धार्मिक ज्ञान में निहित अन्तः सम्बन्ध

वैज्ञानिक ज्ञान एवं धार्मिक ज्ञान के मध्य अन्तः सम्बन्ध (Interrelation between Scientific Knowledge and
Religious Knowledge) — धर्म एवं विज्ञान के मध्य विवाद बहुत ही पुराना है जिसने विद्वानों को दो गुटों में
विभक्त कर दिया है। इन सबके बावजूद दोनों एक तथ्य पर आधारित है वह है ज्ञान । इन दोनों के मध्य विवाद का
मुख्य कारण सोच के तरीकों को लेकर है जिससे ये ज्ञान प्राप्त करते हैं। धर्म के मामले में, ज्ञान मूल रूप में भगवान से या
फिर पवित्र संस्थाओं के व्यक्तियों द्वारा प्राप्त किया जाता है। दूसरी ओर, वैज्ञानिक ज्ञान वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग
करते हुए प्रयोगों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
वैज्ञानिक ज्ञान हमारे समाज के लिए कार्य करता है अर्थात् विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं ज्ञान के द्वारा लोगों की भौतिक
आवश्यकताओं की पूर्ति करना तथा उनका जीवन खुशहाल बनाना। दूसरी ओर धार्मिक ज्ञान का उद्देश्य भी लोगों की
जिन्दगी को खुशहाल बनाना है। धार्मिक ज्ञान लोगों के अन्दर आशा या सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है, लोगों में
नैतिक आचरण, अहिंसा, सत्य, अस्तेय जैसे मूल्यों को स्थापित करता है।
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक ज्ञान तथा धार्मिक ज्ञान को प्राप्त करने के
तरीकों में अन्तर है जिसके परिणामस्वरूप विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके साथ प्रत्येक ज्ञान का अपना
प्रभाव भी समाज पर पड़ता है। वैज्ञानिक ज्ञान जहाँ समाज को भौतिकता की ओर ले जाता है, वहीं धार्मिक ज्ञान
आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है जबकि अत्यधिक तकनीकी उन्नति लोगों में असन्तोष एवं वैमनस्यता को उत्पन्न
करती है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अधिक-सेअधिक भौतिक संसाधनों को प्राप्त करना चाहता है। यदि दोनों में सामंजस्य

बनाकर समाज एवं व्यक्ति आगे बढ़े तो उनका अत्यधिक विकास हो सकता है तथा दोनों के मध्य उत्पन्न विवाद को भी
समाप्त किया जा सकता है तथा समाज को ज्ञान का एक नया स्वरूप प्राप्त हो सकता है।
विज्ञान पूरे तरीके से धार्मिक है क्योंकि धर्म है सत्य को जानना और विज्ञान भी सत्य को ही जानना चाहता है। लेकिन
विज्ञान एक छोटी सी चूक कर देता है। इसे एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं-
उदाहरण
एक पेंडुलम घूम रहा है। उसके चक्कर चल रहे हैं। वैज्ञानिक का सत्य है कि “पेंडुलम घूम रहा है।” और वह उस सत्य को
पेंडुलम में ढूँढेगा। नतीजा? वह पेंडुलम की आवृत्ति निकाल लेगा, समय अवधि निकाल लेगा। वह जान जाएगा कि
लंबाई पर ही सब निर्भर है और वह वही सारी जानकारियां पेंडुलम के बारे में इकट्ठी कर लेगा। और वह कहेगा कि मुझे
सत्य पता चल गया। अब तुम उस पेंडुलम की जगह एक पंखा भी रख सकते हो, आकाशगंगा रख सकते हो और दुनिया
भर की जितनी भौतिक घटनाएँ हैं उन सबको रख सकते हो। और वैज्ञानिक कहेगा कि ‘सत्य वहां है’ और वह उसको
‘वहां’ पर तलाशेगा और सारे नियम खोज डालेगा।
लेकिन पूरी घटना सिर्फ यह नहीं है कि पेंडुलम हिल रहा है ,पूरी घटना यह है कि ‘पेंडुलम हिल रहा है और तुम देख रहे
हो कि पेंडुलम हिल रहा है’ अगर तुम ना कहो कि हिल रहा है तो कुछ प्रमाण नहीं है उसके हिलने का। पेंडुलम के
हिलने का प्रमाण एक मात्र तुम्हारी चेतना से आ रहा है। पेंडुलम के सामने एक पत्थर को बैठा दो तो क्या पत्थर कह
सकता है कि पेंडुलम हिल रहा है?
पेंडुलम हिल रहा है, यह कहने के लिए एक चैतन्य मन चाहिए जो कह सके कि पेंडुलम हिल रहा है। वैज्ञानिक पूरी
घटना नहीं देखता। वह आधी घटना देखता है। आधी घटना में क्या देख रहा है?

  • धर्म पूरी घटना देखता है – धर्म कहता है कि एक नहीं, दो घटनाएँ हो रही हैं। पेंडुलम हिल रहा है और चेतना देख रही है। धर्म कहता है समग्रता में देखो। तो धर्म सिर्फ बाहर ही नहीं देखता, भीतर भी देखता है।
  • विज्ञान सिर्फ बाहर देखता है– विज्ञान देखेगा तो पेंडुलम को देखेगा। धर्म देखेगा तो कहेगा “पेंडुलम है और मन है।” मन को भी समझना आवश्यक है। तो विज्ञान धार्मिक है, पर आधा धार्मिक है। पूरा धर्म हुआ, उसको जानना और मन को जानना।

निष्कर्ष:

वैज्ञानिक ज्ञान और धार्मिक ज्ञान दोनों सत्य की खोज के मार्ग हैं, लेकिन उनकी दृष्टि और पद्धति भिन्न होती है।

  • विज्ञान बाहरी संसार को भौतिक नियमों और प्रयोगों के आधार पर समझता है। यह प्राकृतिक घटनाओं के कारणों की खोज करता है और तकनीकी उन्नति द्वारा मानव जीवन को सरल बनाता है।
  • धर्म केवल बाहरी घटनाओं को देखने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि आंतरिक चेतना, नैतिकता और आत्मज्ञान पर भी ध्यान देता है। यह जीवन के उद्देश्य, आत्मा और परम सत्य की खोज करता है।

अन्तः सम्बन्ध

  • विज्ञान केवल बाह्य जगत की खोज करता है, जबकि धर्म बाह्य और आंतरिक दोनों पक्षों को देखता है।
  • यदि विज्ञान केवल भौतिकता तक सीमित रह जाए, तो यह अधूरा रह जाता है।
  • यदि धर्म केवल आध्यात्मिकता पर केंद्रित रहे और भौतिक विज्ञान को नकारे, तो यह भी अपूर्ण हो जाएगा।
  • दोनों का संतुलित उपयोग समाज को भौतिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बना सकता है।

‘’ धर्म और विज्ञान का ठीक वही संबंध है, जो आत्मा और हृदय का’’
                                              “धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है’’

अतः यह कहा जा सकता है कि विज्ञान और धर्म विरोधी नहीं, बल्कि परस्पर पूरक हैं। जब दोनों का समन्वय किया
जाए, तो मानवता को सत्य का संपूर्ण बोध हो सकता है।

Blog By:

डॉ. हेमलता मिश्रा

Assistant Professor

Biyani Girls College

Role of Technology in Sustainable living

In our rapidly changing world, we are dealing with previously unheard-of environmental issues i.e. like rising carbon emigrations, depleting coffers ,and accelerating climate change. In the chaos of modern life,